चाँद की क्या मजाल ।
वो अपनी खूबसूरती पर इतराये ।
उसके जैसे कितने चाँद धरती पे खुले पड़े है ।
चाँद कैसे अपनी चांदनी को ।
सबके साथ बाट लेता है ।
मैं तो सपने मे भि अपनी रौशनी को ना बाटू ।
चाँद की क्या मजाल ।
वो अपनी खूबसूरती पर इतराये ।
उसके जैसे कितने चाँद धरती पे खुले पड़े है ।
चाँद कैसे अपनी चांदनी को ।
सबके साथ बाट लेता है ।
मैं तो सपने मे भि अपनी रौशनी को ना बाटू ।
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