चाँद शायरी
बहुत दूर है ।
पास होके भि दूर हो ।
बहोत मजबूर हो ।
पास होके भि पास नहीं होते ।
हम चैन से सोकर भि नहीं सोते ।
चाँद कितना दूर है ।
पर हर रोज निकलता है ।
अपने हूर के साथ ।
क्युकी वो नहीं नशे मे चूर ।
गुमान को रखता सदा खुद से दूर ।
उसकी कोई मजबूरी नहीं जो रख सके हमको दूर ।