कदम कदम पे संभलना ।
सिख एे इंसान ।
ये दुनिया ठोकरो से भरी हुई है ।
संभल गये तो ठीक ।
वरना लक्ष्य बदलना पड़ सकता है ।
ठोकर से बच के चलना ।
इस ज़िंदगी मे अगर एक बार ठोकर लगने पे भि नहीं संभले ।
तो ज़िंदगी दुश्वार हो जायगी ।
कदम कदम पे संभलना ।
सिख एे इंसान ।
ये दुनिया ठोकरो से भरी हुई है ।
संभल गये तो ठीक ।
वरना लक्ष्य बदलना पड़ सकता है ।
ठोकर से बच के चलना ।
इस ज़िंदगी मे अगर एक बार ठोकर लगने पे भि नहीं संभले ।
तो ज़िंदगी दुश्वार हो जायगी ।
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