उड़ना तो नहीं भूले ।
पिंजदे मे रहते रहते ।
जुर्म को सेहते है ।
क्या पता क्या जुर्म किया ।
था इन बेबस पक्षियो ने ।
सायद इन्हे इनकी खूबसूरती की सजा मिली ।
इंसान को दोस्त बनाना चाहते थे ।
अपनी आजादी को ही खो दिया ।
सब कुछ पाके भि पा ना सके ।
लोहे के पिंजरे मे रहने को मजबूर हो गये ।
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